सरिया/बरमकेला। भगवान श्री कृष्ण की शक्तियों का स्रोत श्री श्री राधारानी जी का प्राकट्य महोत्सव इक्कतीस अगस्त को श्री राधामाधव आश्रम विश्वासपुर में मनाया जाएगा। इसके लिए तीन दिवसीय विविध आयोजनों जैसे 30 अगस्त को अधिवास,31 अगस्त को राधाष्टमी और 01 सितंबर को मृदंग पूजन के साथ ही राधारानी जी का प्राकट्य महोत्सव मनाने की तैयारियां हरिनाम भिक्षुक गुरु श्री नरसिंह दाश जी महाराज के सान्निध्य में श्री श्री राधामाधव आश्रम समिति के द्वारा चल रही हैं।
श्रीराधा रानी को भगवान श्रीकृष्ण की शक्तियों का स्रोत माना जाता है। दोनों का ही जन्म संबंध भाद्रपद से है। मास विशेष की कृष्ण पक्ष अष्टमी में प्रभु श्रीकृष्ण का जन्म या प्राकट्य हुआ जिसे श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के रूप में उत्सव पूर्वक मनाया जाता है तो श्रीराधा रानी का अवतरण दिवस भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को माना जाता है। इस बार राधा प्राकट्य महोत्सव इक्कतीस अगस्त को मनाया जाएगा।
भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी इक्कतीस अगस्त को दोपहर 12 बजे से श्रीराधा जी का प्राकट्य महोत्सव भाद्र पद शुक्ल पक्ष की मध्याह्न व्यापिनी अष्टमी तथि में हर्ष, उमंग व उल्लास के साथ मनाया जाता है। श्रीराधा जी का जन्म राजा वृष भानु के घर में कीर्ति के गर्भ से हुआ था।
श्री श्री राधामाधव आश्रम समिति के मीडिया प्रभारी चूड़ामणि पटेल ने बताया कि तिथि विशेष पर श्रीराधा जी की नयनाभिराम प्रतिमा का पंचामृत से अभिषेक,हल्दी लेपन,नवीन वस्त्र-आभूषण,फूल आदि से श्रृंगार कर दोपहर में विधि विधान से पूजन-अर्चन किया जाता है। और इस दौरान आगंतुक अनेक कीर्तन भक्त मण्डलियों के द्वारा अखण्ड नाम संकीर्तन भज- श्री कृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यानंद।
जप - हरे कृष्ण हरे राम श्री राधे गोविन्द।। का जाप मृदंग पूजन किया जाता हैं।
श्रीराधा अष्टमी व्रत से पुत्र सुख, धन-धान्य, सुख-सौभाग्य, यश, कीर्ति, ऐश्वर्य प्राप्ति का सुयोग बनता है।
कहा जाता है कि सोलह कलाओं से युक्त भगवान श्रीकृष्ण संसार को मोहित करते हैं, लेकिन श्रीराधा उनका भी मन मोह लेती हैैं। इस कारण उन्हें समस्त देवियों में सर्वोच्च कहा जाता है। भगवान श्रीकृष्ण के साथ राधा रानी का भी पूजन किया जाता है और राधा-कृष्ण नाम जप को पुण्यदायी माना जाता है। हालांकि, राधा-कृष्ण के युगल स्वरूप का पूजन तो सदा से होता रहा है लेकिन कहा जाता है कि 12 वीं शताब्दी में जयदेव गोस्वामी ने जब गीत गोविंद लिखा तो उन्होंने भगवान कृष्ण और उनकी अनन्य भक्त राधा जी के आध्यात्मिक स्वरूप का उल्लेख किया। इसके बाद से युगल स्वरूप की पूजा - आराधना की जाने लगी।
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