संन्यास या बिहार चुनाव? CM सिद्धारमैया की कुर्सी बचने की वजह और इनसाइड स्टोरी

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 देश की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने अपने शासन वाले दक्षिणी राज्य कर्नाटक में शांति प्रयासों के तहत ना सिर्फ पार्टी के अंदरूनी कलह को फिलहाल शांत कर दिया है बल्कि सिद्धारमैया को ही मुख्यमंत्री बनाए रखने पर उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार को राजी करा लिया है। पार्टी में कलह और विवादों के बीच केंद्रीय नेतृत्व ने रणदीप सुरजेवाला को इस मसले को सुलझाने के लिए भेजा था, जिन्होंने चतुराई से इसे सुलझाने में कामयाबी हासिल की है।

दरअसल, डीके शिवकुमार खेमे के एक वफादार विधायक इकबाल हुसैन ने दावा किया था कि शिवकुमार को 100 से ज्यादा विधायकों का समर्थन हासिल है लेकिन अब डीके शिवकुमार का खेमा नरम पड़ गया है। ऐसे में सवाल उठता है कि जो खेमा दो दिन पहले तक नेतृत्व परिवर्तन को आतुर था, वह अब शांत और ढीला क्यों और कैसे पड़ गया? इसकी जद में कर्नाटक कांग्रेस के नेताओं के बीच की चर्चा और रणनीति है, जिससे डीके शिवकुमार को पीछे हटने पर मजबूर होना पड़ा है।

KPCC चीफ का पद

हालांकि, डीके शिवकुमार, सिद्धारमैया और रणदीप सिंह सुरजेवाला के बीच बंद कमरे में जो बातें हुईं, वह तो उन तक या कांग्रेस नेतृत्व तक या गांधी परिवार तक ही सीमित रहेंगी लेकिन जो बातें छनकर बाहर निकली हैं, उसके मुताबिक सूत्रों ने बताया कि बंद कमरे में डीके शिवकुमार से कहा गया कि अगर आप मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं तो कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी (KPCC) का अध्यक्ष पद छोड़ना होगा। इस पर शिवकुमार राजी नहीं हुए क्योंकि उन्हें इस बात का अंदेशा था कि अगर राज्य पार्टी इकाई की कमान उनके हाथों से गई तो सिद्धरमैया उस पद पर अपने किसी वफादार को बैठा सकते हैं। इससे पार्टी और सरकार के बीच खींचतान हो सकती है।

पिछड़ा वर्ग का वोट बैंक और बिहार चुनाव

दूसरी बड़ी बात पिछड़े वर्ग के वोट बैंक और बिहार चुनाव को लेकर बंद कमरे में चर्चा हुई। इस साल के आखिर तक बिहार विधानसभा चुनाव होने हैं, जहां पिछड़े वर्ग की आबादी करीब 64 फीसदी है। कांग्रेस पार्टी इस बड़े वर्ग को सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री पद से हटाकर कोई निराशाजनक संदेश नहीं देना चाहती है। सिद्धारमैया इसी वर्ग से आते हैं। इसलिए पार्टी ने बिहार में पिछड़ों को साधने के लिए सिद्धारमैया को एक सियासी हथियार बनाए रखने पर चर्चा की और उस पर सहमति जताई।

केंद्रीय एजेंसियों के रडार पर डीके शिवकुमार

तीसरी बड़ी वजह डीके शिवकुमार खुद हैं, जिनके खिलाफ केंद्रीय जांच एजेंसियां जांच कर रही हैं। 2019 में मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में शिवकुमार को जेल तक जाना पड़ा था। कांग्रेस को इस बात का अंदेशा रहा कि अगर डीके शिवकुमार को राज्य की कमान सौंपी जाती है तो केंद्रीय एजेंसियां दिल्ली और झारखंड जैसा कांड कर सकती हैं और अरविंद केजरीवाल की तरह मुख्यमंत्री को जेल में डाल सकती है।

सीएम के रूप में रिकॉर्ड, संन्यास और सूबे की सियासत

सूत्रों ने एक और वजह बताई है, जिसके मुताबिक सिद्धारमैया की कुर्सी पर खुद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और उनके बेटे प्रियांक खरगे समेत कई अन्य की नजर है लेकिन खरगे इस मामले में जल्दबाजी नहीं चाहते हैं। इसलिए फिलहाल सिद्धा को ही इस पद पर बनाए रखने को पार्टी तैयार है। एक और वजह बताई जा रही है, जिसमें कहा गया है कि सिद्धारमैया सबसे लंबे दिनों तक मुख्यमंत्री बने रहने का रिकॉर्ड अपने नाम करना चाहते हैं। सिद्धारमैया सात साल 48 दिनों तक सीएम रह चुके हैं, जबकि राज्य के भूतपूर्व सीएम डी देवराज उर्स के नाम सात साल 238 दिनों का रिकॉर्ड है। वह भी कांग्रेस से आते थे और 1972 से 1980 तक तीन बार मुख्यमंत्री रहे थे। सूत्रों ने बताया कि सिद्धारमैया ने पार्टी नेतृत्व से कहा है कि वह इसके बाद डीके शिवकुमार के लिए पद छोड़ देंगे और राजनीति से संन्यास ले लेंगे।