50 साल पहले आज ही के दिन यानी 25 जून, 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आधी रात देश में इमरजेंसी घोषित कर दी थी। इस दौरान आमजनों के लोकतांत्रिक और संवैधानिक अधिकारों को कुचल दिया गया था। कई बड़े नेताओं को जबरन में जेल में डाल दिया गया था। मीडिया समूहों पर सेंसरशिप लागू कर दिया गया था। इस दौरान कई युवा छिप-छिपकर और वेश बदलकर देश में तानाशाही का विरोध कर रहे थे। उन लोगों में नरेंद्र मोदी भी शामिल थे, जिनकी तब उम्र 25 साल थी।
25 वर्ष की उम्र में आपातकाल के दौरान भूमिगत रहकर तब नरेंद्र मोदी ने कई तरह के काम किए थे। हालांकि, वह तब अक्सर वेश बदलकर अलग-अलग रूप धरा करते थे। वह ऐसे घर में रहते थे, जिसमें दो-दो दरवाजे होते थे। ये खुलासे ब्लूक्राफ्ट डिजिटल फाउंडेशन की तरफ से प्रकाशित किताब ‘द इमरजेंसी डायरीज- इयर्स दैट फोर्ज्ड ए लीडर’ में किए गए हैं। इस किताब में आपातकाल के समय पीएम मोदी के साथ काम करने वाले और भी कई सहयोगियों के अनुभवों और अन्य अभिलेखीय सामग्रियों का भी उल्लेख किया गया हैं। केंद्रीय गृह मंत्री ने आपातकाल के 50 साल पूरे होने के मौके पर इस किताब का लोकार्पण किया है।
पूर्व पीएम देवगौड़ा ने लिखी किताब की प्रस्तावना
पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा द्वारा लिखी गई प्रस्तावना वाली इस किताब में खुलासा किया गया है कि आपातकाल के दिनों में नरेंद्र मोदी हमेशा दो या उससे ज्यादा निकास मार्गों वाले घर में रहते थे और वहीं गुप्त बैठकें आयोजित करते हुए आखिरी कदम तक रणनीति बनाते थे? किताब में इस बात की भी चर्चा है कि नरेंद्र मोदी तब अक्सर या तो सिख,या पुजारी या अगरबत्ती विक्रेता या पठान का वेश धारण कर लिया करते थे।
पुलिस से बचने के लिए अनोखे उपाय
किताब में कहा गया है कि इन घरों को चुनते समय मोदी यह सुनिश्चित करते थे कि पुलिस की छापेमारी की स्थिति में वहां से निकला जा सके। किताब में ये भी खुलासा किया गया है कि इन बैठकों को मोदी ने ‘चंदन का कार्यक्रम’ नाम दिया था। जैसे, एक मामले में मोदी ने चार दरवाजों वाला घर चुना था, ताकि अगर पुलिस एक या दो दरवाजों से भी आए, तो वह और दूसरे लोग आसानी से भाग सकें।
घर के बाहर जूते-चप्पल बिखेर दिए जाएं
किताब में यह भी कहा गया है कि मोदी ने यह भी निर्देश दे रखा था कि जिस घर में भी बैठक हो, उसके बाहर जूते-चप्पल बिखेर दिए जाएं। किताब में खुलासा किया गया है कि उन्होंने कहा कि चूंकि जूते-चप्पल बाहर इतने करीने से रखे जाने पर पुलिस आसानी से अनुमान लगा सकती थी कि वहां संघ की बैठक हो रही है। इसीलिए उन्हें बिखेरने का निर्देश दिया जाता था।
अलग-अलग भेष में यात्राएं
किताब में कहा गया है कि मोदी अलग-अलग वेश धारण कर यात्रा किया करते थे, कभी वह खुद को पुजारी के रूप में पेश करते थे तो कभी वह स्वामीजी का रूप धरकर निकला करते थे। किताब में कहा गया है कि एक दिन, वह स्वामीजी का वेश धारण कर एक संघ कार्यकर्ता के घर पहुंच गए थे। इतना ही नहीं, वह स्वामीजी के वेश में ही जेल के अंदर अपने साथी कार्यकर्ताओं से मिलने भी गए थे।
साथी भी पहचानने में खा जाते थे चकमा
किताब में कहा गया है कि आपातकाल के दिनों में गिरफ्तारी से बचने और अपनी गतिविधियों को जारी रखने के लिए नरेंद्र मोदी अक्सर सरदारजी का भेष धर लिया करते थे। उनका सरदारजी का भेष इतना आकर्षक था कि करीबी परिचित भी उन्हें पहचान नहीं पाते थे। किताब में कहा गया है कि मोदी ने भेष बदलकर देश भर में कई यात्राएं की थीं। वह कभी अगरबत्ती बेचने वाले के रूप में, तो कभी पठान के रूप में भी आपाताकल के दिनों में दिखते थे। किताब में कहा गया है कि उनके रूप-रंग इतने आकर्षक और विविध थे कि उन्हें जानने वाले भी उन्हें पहचान नहीं पाते थे।
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